आख़िर कब थमेगा कोटा में आत्महत्या का ये मंजर..!!
कोटा में बच्चों के आत्महत्या का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा हैं. आख़िर इसका गुनाहगार कौन ? मां- बाप , सरकार या फ़िर बच्चे स्वयं !
निहारिका का सुसाइड नोट
कहीं न कहीं इसके जिम्मेदार हम सब हैं. हमने समाज़ में ऐसा सिद्धांत स्थापित कर दिया हैं कि सिर्फ़ डॉक्टर और इंजिनियर बनना ही resepected profession हैं. इसीलिए आजकल मां बाप समाज़ में एक high class stetus बनाने के चक्कर में #अपने सपनों को बच्चों पर थोप देतें हैं. बेमन इन कठिन परीक्षाओं के तैयारियों में बच्चे लग तो जातें हैं, लेकिन जब परीक्षाएं अच्छे #नहीं जातें तो इनका मनोबल टुट जाता हैं.
यदि बच्चे अपनी इक्छा से इन तैयारियो में लगते तो एक परीक्षा खराब होने पर वो अपनी गलतियों से #सीखने का प्रयास करते हैं. लेकिन वही #बेमन #अभाव-प्रभाव-दबाव में आकर तैयारी करने वाले बच्चों के #मन में इसका विपरीत प्रभाव पड़ता हैं.
सबसे बड़ी चिंता की बात ये हैं की सरकार अभी भी इन मुद्दों पर चुप्पी साधे बैठी हैं. माना बच्चों को कैरियर चुनने के लिए पैरेंट्स के guidence की जरूरत होतीं हैं. लेकिन मां बाप अपने बच्चों के भविष्य से परे हट के अपने सपनों को बच्चों पर थोप देतें हैं. जिसका दूरगामी परिणाम #निहारिका के आत्महत्या जैसे होता हैं.
आज निहारिका नहीं रही ! एक कांटे के चुभने से हमें इतना कष्ट होता हैं ,तो सोचिये अपनी जिंदगी खत्म करते हुए 18 साल की निहारिका पर क्या बीती होंगी.
सरकार को बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य व कैरियर guidence के लिए विशेष कार्यक्रम शुरू करने चाहिए. कोचिंग इंस्टिट्यूट के मनमाने #classroom timing पर नज़र बनाना और उनपर उचित कार्यवाही करना भी ज़रूरी हैं.
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