सुकरात: प्राचीन ग्रीस का महान दार्शनिक....

सुकरात: प्राचीन ग्रीस का महान दार्शनिक.... 


आज मैंने महान ग्रीक दार्शनिक सुकरात को जाना, सुकरात की कहानी प्राचीन ग्रीस से शुरू होती है। साधारण से दिखने वाले, रहन सहन में बेढंगे,कई दिनों तक ना नहाने वाले सुकरात ने न तो दर्शन शास्त्र की कोई कोई विशेष किताब पढ़ी और न ही कभी अपने बारे में कुछ लिखा। तो ऐसे में सुकरात महान दार्शनिक कैसे बने? मेरे मन में ऐसे कई सवाल थे। उनके बारे में जो भी जानकारी हमें मिलेगी, वह सब उनके दो शिष्य झिनोफिन और प्लेटो (जिसको हम 'अफलातून' के नाम से भी जानते हैं) ने लिखा। 
              तस्वीर - महान दर्शनिक सुकरात
एक रोज़ एथेन के किसी महान ज्योतिषी ने सुकरात को सबसे बुद्धिमान कहा। सुकरात को यह बात पता लगी तो वह हैरान हो गया कि आखिर ज्योतिषी ने उसे बुद्धिमान क्यों कहा! तब सुकरात एथेन शहर की गलियों में निकल पड़े और हर एक इंसान को रोक-रोक कर पूछने लगे कि न्याय क्या है, सत्य क्या है, झूठ क्या है, खूबसूरती क्या है, और भी बहुत सी चीजें। इस तरह सुकरात 'तर्क' करना सीख गए। धीरे-धीरे पूरा एथेन शहर सुकरात को उनके दार्शनिक विचारों और तर्क करने की खासियत के नाम से जानने-पहचानने लगा।

*दर्शनशास्त्र क्या है और दार्शनिक कौन होते हैं?*

तो चलिए, बताती हूं कि आखिर दर्शनशास्त्र क्या है और दार्शनिक क्या करते हैं? अक्सर हम पाते हैं कि कोई धारणा, मान्यता या कोई बात जो सालों से चली आ रही है, उन पर ज्यादातर लोग बिना किसी पूछताछ के आंख मूंदकर भरोसा करने लगते हैं और उन बातों पर अंधों की तरह अमल करने लगते हैं। ऐसी परिस्थिति में दार्शनिक और दर्शनशास्त्र हमें उन प्रचलित विचारों और धारणाओं पर तर्क करना सिखाते हैं। तर्क ऐसा कि आखिर ऐसा क्यों है, इसके पीछे कारण क्या है! तर्क करना और बहस करना दो अलग चीजें हैं। तर्क करना मतलब जानना और समझना!

*तर्क करने वाले अल्हड़ किंतु महान दार्शनिक सुकरात को मृत्यु दंड क्यों मिला?*
दरअसल, सुकरात के तर्कों के कारण तत्कालीन सामंती शासन परेशान था। उस दरम्यान सामंती शासकों ने सुकरात को मारने की कई कोशिशें कीं। ऐसे में सुकरात पर आरोप लगे कि वह लोगों को भड़काते हैं, सुकरात पर फिजूल तर्क करने के आरोप थे। सुकरात पर ईशनिंदा का आरोप भी लगाया गया और उस पर मुकदमे भी चले।

दरअसल, ईशनिंदा का आरोप लगा उसके पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है। अक्सर जब लोग सुकरात से पूछा करते थे कि तुम इतना तर्क कैसे करते हो! ये बातें, ये तर्क तुम्हें कौन सिखाता है? तो सुकरात कह दिया करते थे कि मेरे कंधे पर एक फरिश्ता बैठा है, वही मुझे ये सब बातें बताता है। अब चूंकि उस समय पर उस देश में ईसा मसीह (ईशाई देवता) के अलावा किसी और को मानना ईशनिंदा की श्रेणी में आता था, इसलिए सुकरात पर उसके फरिश्ते वाली बात को लेकर ईशनिंदा के आरोप भी लगे थे। उन तमाम आरोपों को लेकर लोगों से वोटिंग कराई गई कि सुकरात दोषी है कि नहीं, सुकरात को मृत्यु दंड देना चाहिए या नहीं? इसपर वोटिंग के परिणाम चौंकाने वाले थे। सामंती शासन में फले फूले एथेन शहर के रहवासियों के वोट सुकरात को मृत्यु दंड देने के पक्ष में थे, लिहाजा सुकरात को मुजरिम करार दिया गया और एक विशेष जहर देकर मारने की बात तय की गई। सुकरात के पास भाग निकलने के मौके थे, पर सुकरात मौत से नहीं डरते थे। इसीलिए उन्होंने मृत्यु दंड स्वीकार लिया। उनके शिष्य प्लेटो के अनुसार, सुकरात मानते थे कि "मौत से डरना बेवकूफी है, किसी को नहीं पता कि मौत अच्छी है या बुरी! हो सकता है कि मौत वरदान हो।"

*मरने से ठीक पहले सुकरात ने एसक्लेपियस पर मुर्गा बकाये की बात क्यों कही?*

दरअसल मरने से पहले सुकरात ने कहा कि "क्रिटो, हम पर एसक्लेपियस का मुर्गा बकाया है, उसे जरूर चुका देना!" दरअसल ग्रीक मिथ के मुताबिक 'एसक्लेपियस' मेडिसिन मतलब दवाइयों के देवता थे। मरने के वक्त सुकरात ने एसक्लेपियस को धन्यवाद दिया और ऐसा इसीलिए कहा क्योंकि उनके अनुसार 'एसक्लेपियस' ने उन्हें जिंदगी नाम की बीमारी से निजात दिलाई। इसलिए सुकरात ने क्रिटो से कहा कि एसक्लेपियस पर मेरा मुर्गा बकाया है, अर्थात उसे एक मुर्गा चढ़ा देना।
                 तस्वीर - प्लेटो 'अफलातून'

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