वांगचुक की क्रांति से लद्दाख़ मे आशांति..!!
वांगचुक की क्रांति से लद्दाख़ मे आशांति...!
भारत जैसे लोक-तांत्रिक देश मे हर नागरिक को शांति पुर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार स्वयं भारत का संविधान देता है. लेकिन जिस तरह से लेह- लद्दाख़ के प्रदर्शन करने वाले लोगो को डराया धमकाया जा रहा है. इससे प्रत्यक्ष रूप देखा जा सकता है कि किस तरह से भारत लोक-तंत्र से एक-तंत्र की ओर अग्रसर है.
दर-असल वांगचुक लद्दाख के लिए पूर्ण राज्य, स्थानीय लोगों के लिए नौकरी में आरक्षण, लेह और कारगिल में से प्रत्येक के लिए एक संसदीय सीट और संविधान की छठी अनुसूची लागू करने की मांग को लेकर पिछले 14 दिनों से लेह में शून्य से नीचे के तापमान में भूख हड़ताल पर बैठे थे. शून्य से नीचे तापमान के बावजूद उनके प्रदर्शन में हिस्सा लेने वालों की तादाद लगातार बढ़ती जा रही थी.लेकिन अब उनका प्रदर्शन धारा 144 प्रभावी होने के कारण रुक गया.
हाल ही की बात है, बीते शुक्रवार को कुछ प्रशासनिक अधिकारी प्रदर्शन स्थल चांगथांग क्षेत्र मे पहुँचे थे और प्रदर्शन कारियों को डराने धमकाने का प्रयास किया गया था. लेकिन सोनम वांगचुक और उनके साथी अपने प्रदर्शन पर अडिग रहे और प्रदर्शन जारी रहा. सोनम ने घोषणा किया था कि 7 अप्रैल को वो 'वांगचुक बार्डर मार्च' निकालेंगे. लेकिन मार्च निकालने के ठीक एक दिन पहले 6 मार्च को लद्दाख़ के DM द्वारा शांति व्यवस्था का हवाला देते हुए धारा 144 लागू कर दिया गया.
लेह के उपायुक्त संतोष सुखदेवे ने धारा 144 लागू करने के ठीक बाद तमाम जरूरी निर्देश जारी कर दिये. जिसमे क्षेत्र के दूरसंचार और इंटरनेट सेवा को भी अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है.
ऐसे मे सवाल ये उठता है कि आखिर लेह के आशांति का कारण कौन है! सोनम वांगचुक या फिर वो तमाम राजनेता जिन्होने हर चुनाव मे लेह लद्दाख़ को 6वे अनुसूची मे जोड़ने के आशवासन दिया. और चुनावी फायदे खत्म होते ही नौ-दो-ग्यारह हो गये. सोनम वांगचुक का संघर्ष लेह- लद्दाख़ को केवल 6वे अनुसूची मे शामिल करने को लेकर ही नही, बल्कि लेह मे भारतीय सीमा क्षेत्रों पर चीनियों द्वारा हो रहे अवैध कब्ज़े को लेकर भी है.
वांगचुक ने दावा किया कि चीन ने लद्दाख की 4,067 वर्ग किमी जमीन को हड़प लिया,और देश की सीमा मे पैर पसार रहा है । ये मामले लगातार बढ़ते जा रहे है जिसके विरोध मे सोनम ने आवाज़ उठाई.सोनम के संघर्ष को ना तो मेनस्ट्रीम मीडिया के खबरों मे जगह दी गयी ,और न ही भारत सरकार द्वारा इस पर कोई ख़ासा बयान सामने आया है. लद्दाख़ का आंतरिक हालात् दिन-ब-दिन खराब होते जा रहा है. इसपर केंद्र सरकार का ध्यान ना देना काफ़ी निंदनीय है.केंद्र सरकार को प्रदर्शनकारियों से बात करना चाहिए और जल्द से जल्द इस मामले मे बीच का रास्ता निकाला जाना चाहिए. ताकि लद्दाख़ मे एक फ़िर शांति और अमन के माहौल को अमलीज़ामा पहनाया जा सके.
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